Wednesday, January 28, 2015

सवालों के घेरे में अखिल भारतीय स्तर की कला प्रदर्शनियां

रविंद्र दास, कलाकार एवं कला समीक्षक
जनवरी 29, 2015


अखिल भारतीय स्तर की कला प्रदर्शनी का स्तर क्या होना चाहिए, इस बात की चर्चा अगर आईफैक्स जैसी संस्था के संचालकों से की जाये, तब जिन मानकों की चर्चा वो स्वयं करेंगे, उन्हीं मानकों पर शायद पिछले दिनों आईफैक्स द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कला प्रदर्शनी खरा नहीं उतरेगी।
प्रदर्शनी में 8वीं अखिल भारतीय व्यक्ति-चित्र प्रदर्शनी, 13वीं अखिल भारतीय परंपरागत कला पदर्शनी और 15वीं अखिल भारतीय जलरंग प्रदर्शनी को समाहित कर दिया गया था। इसके पीछे ठोस तार्किक वजह रही होगी, ऐसा लगता नहीं है, सिवाय इसके कि वित्तीय वर्ष की समाप्ति से पहले बजट का किसी तरह निपटा दिया जाये।

सबसे पहले बात प्रदर्शनी में शामिल कलाकृतियों की। प्रदर्शनी के व्यक्ति-चित्र खंड में शामिल कलाकृतियों में पार्थ प्रतिम राय, चिन्मय पांडा और विनय अवात्रे की कृतियां प्रभावित करती हैं और उन कृतियों को पुरस्कृत किया जाना सुखद है। परंपरागत खंड में राखी सालुके, नारखाड़ीवाला, किशोर कुमार रतिलाल और नीलकांत चौधरी की कृतियां सहज ही ध्यान आकर्षित करती हैं, लेकिन इस खंड में वरिष्ठ कलाकार मांगेराम शर्मा की कृति "शिव बारात' आखों को सबसे ज्यादा लुभाती है। जलरंग खंड की कई कृतियों को देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि इसमें नये प्रयोगों की तरफ कलाकारों का रुझान बढ़ा है। अन्यथा, इसे आमतौर पर सिर्फ लैंडस्केप या व्यक्ति-चित्रों के लिए ही उपयुक्त माना जाने लगा था। आज अतुल डोडिया, मिथु सेन, जगन्नाथ पांडा और सुरेन्द्रन नायर जैसे चर्चित कलाकार भी जलरंग में रचनाए गढ़ रहे हैं।

इनके अलावा एन. कांथराज, भीम मल्होत्रा, मनोज मोहंती और संजय कुमार जायसवाल की कलाकृतियां भी उल्लेखनीय हैं। लेकिन जिस तरह से प्रदर्शनी का आयोजन किया गया, उसे देखकर निराशा होती है। आयोजकों से यह पूछा जाना चाहिए कि परंपरागत कला खंड में उन कलाकृतियों को स्थान क्यों दिया गया जिन्हें आधुनिक कला खंड का हिस्सा होना चाहिए था। सवाल निर्णायक मंडल की कला विशेषज्ञता और कला से जुड़ी उनकी समझ पर भी खड़ा होता है। एक सवाल यह भी है कि आखिर किन कारणों से तीन अलग-अलग प्रदर्शनियों के लिए एक ही निर्णायक मंडल नियुक्त किया गया और उसमें भी आईफैक्स से जुड़े दो कलाकारों को क्यों शामिल किया? बेहतर तो यह होता कि निर्णायक मंडल में किसी वरिष्ठ कलाविद, कलाकार और कला पारखी को शामिल किया जाता जो अलग-अलग स्तर पर कलाकृतियों का परीक्षण करते और उन्हें प्रदर्शनी का हिस्सा बनाने की अनुशंसा करते।


यह देखकर आश्चर्य होता है कि एक तरफ जहां समकालीन कला में नए रुझानों और प्रयोगों का चलन बढ़ा है, वहीं दूसरी तरफ आईफैक्स और ललित कला अकादमी जैसी संस्थाएं उन प्रयोगों और रुझानों से या तो अनजान हैं या उनसे अपनी आंखें मूंदी हुई हैं। अगर ऐसा नहीं होता तब आईफैक्स में शामिल केवल कुछ कलाकृतियां ही राष्ट्रीय स्तर की नहीं होती, पूरी प्रदर्शनी ही राष्ट्रीय स्तर की होती। संभवत: इन्हीं वजहों से देश के ख्यातिलब्ध और प्रयोगधर्मी कलाकार इस तरह के आयोजनों से खुद को अलग रखते हैं और उसका एक परिणाम यह भी है कि इंडिया आर्ट फेयर और कोच्चि मुजिरिस बिनाले जैसे आयोजन निजी प्रयासों के बूते सफल हो रहे हैं।